शुक्रवार, 8 मई 2015

तावङो घणो

हम तो निकले थे तलाशे ऐ इश्क में
अपनी तनहाईयों से लड़ कर

मगर
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तावङो घणो थो तो गन्ना रो रस पिर पाछा आग्या ......

शुक्रवार, 1 मई 2015

सूजी

एक ईसाई खुद री लुगाई ने घणी भांगी,
ठोक ठोका ने वो तो बारे गयो।
खने एक मारवाड़ी लुगाई रेवती वा वीरे खने गई और पूछ्यो
थाने तो थाना धणी घणी भांगी-आपरो नाम काईन है??
लुगाई बोली-सूजी(suzi),
मारवाड़ी लुगाई-ऐ मारी माँ इत्ती भांगी तो सूजी कोनी तो कई रेई। हाल तो बाई सूजी है काले पाकेला हावल ध्यान राखजो सा।

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

थोड़ा दिना पछे ए शायद कोनी मिलेला

थोड़ा दिना पछे ए शायद कोनी मिलेला ⌛

 लुगाईओ में लाज,
दिलों में राज,
चुल्हा री आग,
सरसुं रो साग,
सिर उपर पाग,
संगीत रा राग,

.... कोनी मिलेला सा ...

औंगण में ऊखल,
कूण म मूसल,
घरां में लस्सी,
लत्ते टांगण की रस्सी
रिश्तों रो उजास,
दोस्तों रो गरमास,
पहलवानां री लंगोट,
हनुमानजी रो रोट,
घूंघट आली लुगाई,
गावं म दाई, 

..... कोनी मिलेला सा ....

सासरा में लाडू ,
तैवार माथे साडू,
दोस्तां साथे भोज,
सुबह शाम नितरोज,
िचड़ी बल्ला रो खेल,
WHatsapp माते मेल,

.......कोनी मिलेला सा .....

बात सुनती घरआली,
हँस बतलावती साली,
घरां में बुढ्ढा,
बैठकां में मुड्डा,
अलपता टाबर,
सुहावता आखर,
अनजानो री आशीष,
कमतर ने बक्शीस,
राज में भला,
ने बंद गला,

.....कोनी मिलेला सा...

शहर री आन,
मुछों री शान
ताऊ रो हुक्का,
ब्याह रो रुक्का,
हिसाब री पर्ची,
गली वालो दर्ज़ी ,
पाटडे माते नहाणो,
पत्तल पे खाणा,
पाणी भरेडा देग,
बेन बेटी रो नेग,

.........कोनी मिलेला सा ....

खाणो वाइफ रो

खाणो वाइफ रो,
पाणी पाइप रो, ,
ध्यान एक री,
सलाह दो  री,
गावणो तीन रो,
चोकडी चार री,
पंचायती पान्च री,
छाती कुटो छ: रो,
प्यार भाई रो,
नशो दवाई रो,
दूध गाय रो,
स्वाद मलाई रो,
वेर दुश्मन रो,
वगार राई रो,
एको नाई रो,
घर लुगाई रो,
टोन्को दर्ज़ी रो
मेसेज दमजी रो
न्याय ताकडी रो,
साग काकडी रो,
जाल मकडी रो,
बलितो लकडी रो,
घी जाट रो,
तेल हाट रो,
तोलणो बाट रो,
लाडु सुण्ठ रो,
महीनो जून रो,
कपडो ऊन रो,
घाघरो वरी रो,
और नाम बोलो हरी रो। 

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सोमवार, 27 अप्रैल 2015

5 मारवाड़ी सब्जियो के नाम

मारवाड़ मे एक नरसरी क्लास के

हिन्दी के ओरल पेपर मे मेडम ने पुछा की

,,५सब्जियो के नाम बताओ ?

,, बच्चा बोला,,,-





पापड,बडिया,राबोडि,गट्टा,मोगर

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

खेत में एक सांप

भोत पुराणी बात है.....म्हारै गाँव में एक गरीब आदमी हो
बापड़ो
बो एक दिन खेत गयो, ।
खेत में एक सांप बिंगे पग गै डंक मार दियो,

बो आदमी रोयो कोनी आप गो पग सांप गे आगे कर दियो ..

कैवै
..ले और मारलै डंक,

सांप बिंगे २-३ डंक और मार दिया,

आदमी आपगो पग और आगे कर दियो कै ..

.ले और मारलै डंक

सांप और ४-५ डंक मार दिया ,

सांप बापड़ो डंक मारतो मारतो धाप ग्यो,

अर आदमी ने पूछ्यो कै भाया तूं आदमी है क कोई ओपरी छायाँ है?

तेरे मैं डंक मारण लागरयो हूँ कोई असर क्यों कोनी हुवै ..

आदमी बोल्यो कै सांप राजा मैं ओपरी छायाँ कोनी आदमी ही हूँ

पण मेरो ओ पग जयपुर स्यु ल्यायोडो है

महावीर विकलांग केंद्र स्यु ...

..................... हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा

शक्ति स्तुति.........

शक्ति स्तुति.........

करणी करुणा कारिणी , काटण कठण कलेश l
आवड़ अम्ब अवतारिणी, आवौ आप अवेस  |

आदि सगत तू ईसरी, आवड. तू अवलम्ब
जुग तारण तू जोगणी,जै जै जै जगदम्ब

दुर्गा दुक्ख निवारिणी, दुस्ट दलन दातार
प्रकटौ पिनाकधारिणी, शरणागत साधार

चामुण्डा चकरेसरी, चरण शरण मैं तोय
पत राखौ परमेसरी मेहर करियौ मोय

करनल किरपा कीजिऐ ,धरूं तिहारो ध्यान
राजी होकर रीझिये ,दे दरसण को दान

नागाणा नित नमन करूं,नव नारायणी नाथ
नेह निज नवाज कर   हरदम राखौ हाथ (रतनसिहं चाँपावत )

नीति रा दुहा

नीति रा दुहा

सदा न संग सहेलियां, सदा न राजा देश
सदा न जुग में जीवणा, सदा न काळा केश ।।

सदा न फूले केतकी, सदा न सावण होय
सदा न विपदा रह सके, सदा न सुख भी कोय।।

सदा न मौज बसंत री , सदा न ग्रीसम भांण
सदा न जोबन थिर रहे, सदा न संपत मांण ।।

सदा न काहूं की रही , गळ प्रीतम के बांह
ढळतां-ढळतां ढळ गई, तरवर की सी छांह ।
पुराना

सत विहीणां साधवी

सत विहीणां साधवी, लाज विहीणां लोग
मत विहीणां मानवी रग रग रमियौ रोग 
(रतनसिहं)

कपटी कोजा कूड़, मिनख मरावण मोकळा
धोबां धोबां धूड़ , राळो मिलकर रतनसी
(रतनसिहं)

बातां हन्दा बावळा, गायड़मल्स घणांह
आगीवांण उतावळा ,जीवै किता जणांह

(रतनसिहं)

बङज्या

नौकरी के लिए इंटरव्यू चल रहा था....
बहुत लम्बी लाइन लगी हुईथी...
गेट पर लिख रखा था अंदर आने के लिए
जो सबसे कम शब्दबोलेगा उसे नौकरी दी जाएगी...
अब कोई कहे:- "मै आई कम इन सर!"
कोई:- "क्या में अन्दर आ सकती हूँ।"
कोई कुछ कोई कुछ ..
तभी एक मारवाडी का नंबर आया..
उसने कमरे के गेट में गर्दन भीतर डाली
और बोल्या :"बडूँ??"
सर: "बङज्या...!!!"

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

कठै गया बे गाँव आपणा

कठै गया बे गाँव आपणा
                  कठै गयी बे रीत ।
  कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
                 गयो जमानो बीत ||

  दुःख दर्द की टेम घडी में
            काम आपस मै आता।
मिनख सूं मिनख जुड्या रहता,
         जियां जनम जनम नाता ।

तीज -त्योंहार पर गाया जाता ,
                  कठै गया बे गीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
              गयो जमानो बीत ||(1)

गुवाड़- आंगन बैठ्या करता,
           सुख-दुःख की बतियाता।
बैठ एक थाली में सगळा ,
          बाँट-चुंट कर खाता ।

महफ़िल में मनवारां करता ,
              कठै गया बे मीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
             गयो जमानो बीत ||(2)

कम पीसो हो सुख ज्यादा हो,
                उण जीवन रा सार मै।
छल -कपट,धोखाधड़ी,
               कोनी होती व्यवहार मै।

परदेश में पाती लिखता ,
                  कठै गयी बा प्रीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
                  गयो जमानो बीत ]

पाळ पुराणी जळ नवो

पाळ पुराणी जळ नवो, हंसा बेठो आय।
प्रीत पुराणी कारणे, चुग चुग कांकर खाय॥

साजन हम तौ मोर हे ,तुम सावन को मेह।
हम तो जानत बरसबो, तुम देवत हो छेह॥

दिन सोळह उनमाद रा,सोले बरसा नार ।
ससि बदनी सोळह कला, सोले सज सिणगार॥

साजन ऐसा कीजिए,  ढाल सरीसा होय ।
सुख मे तो पाछे रहे, दुख मे आगे होय॥॥

शेरी मिंतर सब मिळै
ताळी  मिंत अनेक।
जिण मे सुख दुःख वामिये,
सो लाखो में एक॥

दारूरा दुरगण (दूहा)


पिण्ड झड़े , रोबा पडे़ , पड़िया सड़े पेंषाब ।
जीब अड़े पग लडथडे़, साजन छोड़ शराब ।। १ ।।
कॉण रहे नह कायदो, अॅाण रहे नह आब।
(जे) राण बाण नित रेवणो,(तो) साथी छोड शराब
11 २ 11
जमी साख जाति रहे ,ख्याति हुवे खराब ।
मुख न्याति रा मोड़ले ,साथी छोड़ शराब 11 ३ 11
परणी निरखे पीवने , दॉत आंगली दाब।
भॉत भॉत मंाख्यंा भमे, साजन छोड़ शराब 11 ४ 11
आमद सू करणो इधक , खरचो घणो खराब ।
सदपुरखॉ री सीखहे, साथी छोड़ शराब 11 ५ 11
सरदा घटे शरीर री , करे न गुरदा काम।
परदा हट जावे परा, आसव छोड़ अलाम 11 ६ 11
कहे सन्त अर ग्रंथ सब , निष्चय धरम निचोड़ ।
जे सुख चावे जीवणो, (तो) छाक पीवणो छोड़ 11 ७
11
मोनो अरजी रे मनां , मत कर झोड़ झकाळ।
छाक पीवणी छोड़दे, बोतल रो मुॅहबाळ 11 ८ 11
चंवरी जद कंवरी चढी, खूब बणाया ख्वाब ।
ख्वाब मिळगया खाक मे, पीपी छाक शराब 11 ९
11
घर मांेही तोटो घणों, रांधण मिळेन राब।
बिलखे टाबर बापड़ा , साजन छोड़ शराब ।। १0 ।।
दारू में दुरगण घणा , लेसमात्र नह लाब ।
जग में परतख जोयलो , साथी छोड़ शराब ।। ११ ।।

मोहन सिंह जी रतनू कृत