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शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

गुरू महिमा दोहा

              श्री गुरू महिमा
                      दोहा
करूं निवण गुरुदेव कू, पल पल लागूं पांय ।
महिमा सातूं मुल्क री , सतगुरु दी समझाय ।।
सतगुरु की करू सेवना , मुझ साचोड़े मन्न ।
बगसे शिष को बापजी , धिन धीणो अन्न धन्न ।।
                       छन्द त्रिभंगी
नमहूँ गुरुदाता शीश निवाता , गुण जस गाता हरसाता ।
धिन धिन जग धाता ध्यान धराता , पाप नसाता सुख पाता
देवन के दाता विमल विधाता , सबद सुनाता सत सारी ।
धिन धिन गुरु धाऊँ शीश नमाऊं , वारी जाऊँ बलिहारी जी
वारी वारी बलिहारी ।।१।।

गूढ़ा रस ज्ञानी संगम सानी , दया दिलानी दरसानी ।
सतसगं सरसानी सत समझानी , बदरा धानी बरसानी ।।
माया इम मानी महज मसानी , धारे ध्यानी तपधारी ।
धिन धिन गुरु धाऊँ शीश नमाऊं , वारी जाऊँ बलिहारी ।।२।।

तोड़े धी ताळा जमरा जाळा , करे उजाळा किरणाला ।
गहरे गुण वाळा दीन दयाळा , जन प्रतपाळा जोराळा ।।
भूचर भोपाळा खे विचराळा , रहे रिझाळा मन मारी ।
धिन धिन गुरु धाऊँ शीश नमाऊं , वारी जाऊँ बलिहारी ।।३।।

धर चित गुरु धारा पास पुकारा , आज हमारा आधारा ।
बूडत भव तारा भय हर भारा , दीन सहारा दातारा ।।
सुख दुख इकसारा सोच सुधारा , सतं सहारा सखुकारी ।
धिन धिन गुरु धाऊँ शीश नमाऊं , वारी जाऊँ बलिहारी ।।४।।

आतुर मन आवे जी अकुलावे, शरण सिधावे सरसावे।
परतख पद पावे व्याध जरावे बुध बगसावे बल पावे।।
गुण "सूरो" गावे मोद मनावे, सुख उपजावे पतियारी ।
धिन धिन गुरु धाऊँ शीश नमाऊं , वारी जाऊँ बलिहारी ।।५।।
छप्पय
बडा ज तिणरा भाग , सतगुरु जिण पर सरसे।
अघ हंदी जम आग , बण बादर गुरु बरसे।।
गम आगम रा गेह , झलक हद अणहद जाणे।
अहर निश खेह अखेह , परम गुरु अलख पिछाणे।।
अवगुण हर सद्गुण चित आपे, हर माया तम जाळ हरे।
कव जोड़ पाण " सूरो" कहे, सतगुरु शरण लियों सरे।।
सुरेश दान