मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

धापुडी द्वारा अपने मोट्यार को लिखा गया कागद

||धापुडी द्वारा अपने मोट्यार को लिखा गया कागद||
म्हार हिवडा का हार,
म्हारा सोलहा सिंगार,
म्हारी पप्पूडी का पापा...
थारी चौडी-चौडी राफा....!
हे प़ाणनाथ जी,
गोपिया का नाथ जी,
म्हार रूप का दास जी,
त्रिलोकी का नाथ जी...
थाको कोजो घणों साथ जी.....!
हे म्हारी जलती ज्योत,
करवा चौथ,
धान का बोरा,
उन्डोडा औरा...
थाक एक दर्जन छोरी और छोरा.....!
भोमिया का स्वामी,
म्हारी जामी सा थाकी,
सत्यानाशी,
कुल विनाशी,
कालिया की मासी,
चरणा की दासी,
थार प़ाणा की प्यासी,
थाकी पाताल फोड लाडली,
धापुडी का पगा लागणा मानज्यों...
और हो सक तो आखा-तीज पर घरा पधारज्यों.....।।
आगे समाचार एक बाचज्यों कि--सुसरो जी न हिडकायों कुत्तों खायगों...
और चौथियों चौथी मैं चौथी बार फेल आयगों.....!
सुसरो जी तो हिडक्या और मरग्या...
पण मरता मरता सासू जी न हिडक्या करग्या.....!
सासू जी मरा मौत, कु-मौत, कुत्त की मौत और सासू जी न मरता देख म्हारो भी मरणा स मन फाटग्यों है...
जीतियों नाई काल स्वर्ग सिधारगों और बीको तियो पंडत गरूड्यों करायग्यों है......।।
गीतूडी क करमडा मैं है ना जुआ पडगी है...
और सीतूडी क काना की एक बाली गमगी है.....!
थाकी काणती काकी काल छाछ खातर घरा आर लडगी...
और म्हारी बडकी सेठानी घीनाणी सु पानी ल्याती पडगी.....!
भुवाजी रोजीना ही गुद का लाडू खाव...
और नानूडा की लुगाई मैं मंगलवार की मंगलवार पीतर जी आव.....।।
पपीयों,गीगो,लाल्यों और राजिया की लुगाई चलती री, पण थे तो जाणो ही हो राम क आग किको बस चाल है...
और होणी न कुण टाल है.....!
हे म्हारा बारहा टाबरा का बाप...
थान लाग शीतला माता को श्राप.....!
थे आदमी हो या हरजाई...
थे मनै अठै ऐकली छोडगा थान शरम कोनी आई.....!
थे आ पूरी पलटन म्हारै वास्तै छोडगा...
एक इंजन मैं बारह डब्बा जोडगा.....।।
इ बार सर्दी अणहोती पड,ई वास्तै टाबर घणा रोव है...
दो चार दिना सु भूखा ही सोव है.....!
थाक माय न अब भी थोडी घणी शरम बाकी होव तो पाछा कदै ही मत आइज्यों...
पर पाँच हजार रूपिया हाथु हाथ भिजायज्यों.....।।
मै तो रोजीना की काय सै तंग आकर सूख कर सागरी होगी...
हाथ का पाटला आगल्या मैं ही कोनी आव और भूख लाग नही.....!
काल दिन थोडी भूख लागी जणा सवा-सेर आटा को सीरो कर खायो जणा थोडी आँख लागी...
जिको तीजे दिन दोपहारा 3-बजे जागी.....!
और जागी काई पडोसन ओळमों देबा न जगा दी...
कहयों थारो "गोविन्दो" म्हारी मटकी फोड दी.....!
हे प़ाण नाथ अब थे ही बताओ मैं कठै जाऊँ सारा दिन उन्दा-उन्दा वहम आव...
कमरा सू दरवाजा तक आऊँ डाकिये न देख दरवाजो बंद करदयूँ, काई ठा थाक आवण का समाचार नही आज्याव.....।।।
थाक प्राणा की प्यासी...धापूडी।
😜😜😜😜😜😜😜😜😜😜

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