शनिवार, 16 अप्रैल 2016

बुझाणो कोनी : एक राजस्थानी व्यंग्य कविता

बुझाणो कोनी : एक राजस्थानी व्यंग्य कविता

पति-पत्नी कै बीच मैं,
एकर बहस छिड़ी बड़ी सोणी।

पत्नी बोली- इसो कोई विभाग बताओ,
जिण मैं लुगाई कोनी।

राजनीति, धर्म, थानेदारी, गुण्डागर्दी,
म्हे तो सब जगा बढ़गी हां।

ओर तो ओर म्है तो,
चांद पर भी चढगी हां।

पति कै माथा मैं या बात अड़गी,

पण झट भेजो लगायो अर
बोल्यो,

दमकल विभाग मैं,
थे एक भी लुगाइ कोणी

खिसियांती सी पत्नी बोली,
बो तो म्हे जाणकर ही छोड़यो है,
थे आ बात जाणो कोणी,

लुगायां रो काम आग लगाणो है,
बुझाणो कोनी..

1 टिप्पणी: