रामदेव सतक
बरसी अणहद बादळी,खेती बाड़ी खेल।
करसा जावै खेत में सुगन,पलाऊ पैल।।१।।
हाळी करै हळोतरौ, सुगन तणो विस्वास।
करसां मुड़तै देखिया ,अजमल चित आभास।।२।।
करसां खेती कारणै, सुगन विचार्या आम।
अजमल देख्यौ आवता, पाछा मुड़िया धाम।।३।।
अजमल कारण पूछियौ,पाछा किणविध आप।
सुगन पलाऊ बांझियै, पड़ै काळ अणमाप।।४
अजमल असल अराधना, दरस द्वारकाधीस।
सुत थारौ बण सांतरौ, आवूं द् यौ आसीस।।५।।
अजमल घर खुद आविया,मदन मुरारी रूप।
झटपट झूला झूलिया, दीप्या दिवलै धूंप।।६।।
भल भादरवा बीज रा, दरसण दीना आप।
अजमल मैंणा आपरी,आंख्यां कीधा धाप।।७।।
बाळक अणहद बोलकौ,रंग रूप पलटाय।
अवनी अंबर ओपतौ, मधुर मंद मुसकाय।।८।।
पळका करता पौढिया,बाळक पींगै माय।
मैंणादे हरसावतै, अंक उठायौ आय।।९।।
कपड़ा कतरण घोड़लै,चढ़िया बाळक आप।
भैरव राकस मारियौ, सगळा हर संताप।।१०।।
लगोलग.......