कोयल कूक सुहावणी
कोयल कूक सुहावणी,
मधुरा बोले बेण !
किणविध तू काली भई,
किणविध तू काली भई,
किण विध राता नैण
बागां बागां मैं फिरी,
मिल्यो न कोई सैण !
कूक कूक काली भई,
कूक कूक काली भई,
रो रो राता नैण
: बिल्ली
उरला बिल रा ऊन्दरा,
परला बिल जो जाय !
लाख टका दूं रोकड़ा,
लाख टका दूं रोकड़ा,
बैठो बैठो ही खाय !!
चूहा
भांय थोडी़ भाड़ो घणो ,
झोखो ऊपर जाय !
बीच मिनीमासी झांपले,
बीच मिनीमासी झांपले,
लाखटका कुण खाय!!