528 वर्ष पूर्व राव बीकाजी द्वारा हुई थी
बीकानेर की स्थापना
विक्रम संवत् 1545 के वैशाख मास के शुक्ल पक्ष
की द्वितीया तिथि को ।
विश्व प्रसिद्ध चूहों के मंदिर ( जो बीकानेर से
लगभग तीस किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित
है ) में जिस देवी की मूर्ति है , उनका नाम
करणी माता है ; वे उस समय सशरीर इस मरुधरा
जांगळ प्रदेश में विद्यमान थीं । उनके आशीर्वाद
से जोधपुर राजघराने के राजकुंअर बीका ने अपने
पिता और अन्य लोगों के ताने को चुनौती रूप
में स्वीकार करते हुए , अपने चाचा कांधलजी के
साथ कड़ी श्रम -साधना , संघर्ष और जीवटता के
बल पर इस बंजर निर्जन भू भाग को रसा - बसा
कर बीकानेर नाम दिया ।
अक्षय द्वितीया के दिन बीकानेरवासी गेहूं
और मूंग का खीचड़ा घी मिला कर इमली और
गुड़ से बने स्वादिष्ट पेय इमलाणी के साथ जीमते
हैं , और घरों की छतों पर पतंग उड़ा कर हर्ष -
उल्लास से उत्सव मनाते हैं । यह हंसी- ख़ुशी , हर्ष
-उल्लास और उत्सव का माहौल अगले दिन
अक्षय तृतीया तक और भी जोशोख़रोश के
साथ उत्तरोतर बढ़ता ही जाता है ।
यहां के दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं -
श्रीलक्ष्मीनाथ मंदिर , नागणेचेजी का मंदिर ,
भांडाशाह जैन मंदिर , जूनागढ़ किला , लालगढ़
पैलेस , म्यूज़ियम , लालेश्वर महादेव मंदिर -
शिवबाड़ी , करणीमाता मंदिर - देशनोक ,
कपिलमुनि मंदिर और सरोवर - कोलायत , गजनेर
पैलेस आदि… ।
यहां के भुजिया , मिश्री , पापड़ , मिठाई ,
नमकीन आदि जगप्रसिद्ध हैं ही ।
सोमवार, 20 अप्रैल 2015
Bikaner city
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