सत विहीणां साधवी, लाज विहीणां लोग
मत विहीणां मानवी रग रग रमियौ रोग
(रतनसिहं)
कपटी कोजा कूड़, मिनख मरावण मोकळा
धोबां धोबां धूड़ , राळो मिलकर रतनसी
(रतनसिहं)
बातां हन्दा बावळा, गायड़मल्स घणांह
आगीवांण उतावळा ,जीवै किता जणांह
(रतनसिहं)
सत विहीणां साधवी, लाज विहीणां लोग
मत विहीणां मानवी रग रग रमियौ रोग
(रतनसिहं)
कपटी कोजा कूड़, मिनख मरावण मोकळा
धोबां धोबां धूड़ , राळो मिलकर रतनसी
(रतनसिहं)
बातां हन्दा बावळा, गायड़मल्स घणांह
आगीवांण उतावळा ,जीवै किता जणांह
(रतनसिहं)
नौकरी के लिए इंटरव्यू चल रहा था....
बहुत लम्बी लाइन लगी हुईथी...
गेट पर लिख रखा था अंदर आने के लिए
जो सबसे कम शब्दबोलेगा उसे नौकरी दी जाएगी...
अब कोई कहे:- "मै आई कम इन सर!"
कोई:- "क्या में अन्दर आ सकती हूँ।"
कोई कुछ कोई कुछ ..
तभी एक मारवाडी का नंबर आया..
उसने कमरे के गेट में गर्दन भीतर डाली
और बोल्या :"बडूँ??"
सर: "बङज्या...!!!"
कठै गया बे गाँव आपणा
कठै गयी बे रीत ।
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
गयो जमानो बीत ||
दुःख दर्द की टेम घडी में
काम आपस मै आता।
मिनख सूं मिनख जुड्या रहता,
जियां जनम जनम नाता ।
तीज -त्योंहार पर गाया जाता ,
कठै गया बे गीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
गयो जमानो बीत ||(1)
गुवाड़- आंगन बैठ्या करता,
सुख-दुःख की बतियाता।
बैठ एक थाली में सगळा ,
बाँट-चुंट कर खाता ।
महफ़िल में मनवारां करता ,
कठै गया बे मीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
गयो जमानो बीत ||(2)
कम पीसो हो सुख ज्यादा हो,
उण जीवन रा सार मै।
छल -कपट,धोखाधड़ी,
कोनी होती व्यवहार मै।
परदेश में पाती लिखता ,
कठै गयी बा प्रीत ||
कठै गयी बा ,मिलनसारिता,
गयो जमानो बीत ]
पाळ पुराणी जळ नवो, हंसा बेठो आय।
प्रीत पुराणी कारणे, चुग चुग कांकर खाय॥
साजन हम तौ मोर हे ,तुम सावन को मेह।
हम तो जानत बरसबो, तुम देवत हो छेह॥
दिन सोळह उनमाद रा,सोले बरसा नार ।
ससि बदनी सोळह कला, सोले सज सिणगार॥
साजन ऐसा कीजिए, ढाल सरीसा होय ।
सुख मे तो पाछे रहे, दुख मे आगे होय॥॥
शेरी मिंतर सब मिळै
ताळी मिंत अनेक।
जिण मे सुख दुःख वामिये,
सो लाखो में एक॥
पिण्ड झड़े , रोबा पडे़ , पड़िया सड़े पेंषाब ।
जीब अड़े पग लडथडे़, साजन छोड़ शराब ।। १ ।।
कॉण रहे नह कायदो, अॅाण रहे नह आब।
(जे) राण बाण नित रेवणो,(तो) साथी छोड शराब
11 २ 11
जमी साख जाति रहे ,ख्याति हुवे खराब ।
मुख न्याति रा मोड़ले ,साथी छोड़ शराब 11 ३ 11
परणी निरखे पीवने , दॉत आंगली दाब।
भॉत भॉत मंाख्यंा भमे, साजन छोड़ शराब 11 ४ 11
आमद सू करणो इधक , खरचो घणो खराब ।
सदपुरखॉ री सीखहे, साथी छोड़ शराब 11 ५ 11
सरदा घटे शरीर री , करे न गुरदा काम।
परदा हट जावे परा, आसव छोड़ अलाम 11 ६ 11
कहे सन्त अर ग्रंथ सब , निष्चय धरम निचोड़ ।
जे सुख चावे जीवणो, (तो) छाक पीवणो छोड़ 11 ७
11
मोनो अरजी रे मनां , मत कर झोड़ झकाळ।
छाक पीवणी छोड़दे, बोतल रो मुॅहबाळ 11 ८ 11
चंवरी जद कंवरी चढी, खूब बणाया ख्वाब ।
ख्वाब मिळगया खाक मे, पीपी छाक शराब 11 ९
11
घर मांेही तोटो घणों, रांधण मिळेन राब।
बिलखे टाबर बापड़ा , साजन छोड़ शराब ।। १0 ।।
दारू में दुरगण घणा , लेसमात्र नह लाब ।
जग में परतख जोयलो , साथी छोड़ शराब ।। ११ ।।
मोहन सिंह जी रतनू कृत
5 मई रै दिन मायङ भाषा राजस्थानी री राजमानता खातर दिल्ली मांय धरणों राखिज्यो छै ।अबै सरकार सूं आरपार री जंग तेवङ दी छै।इण महताऊ कारज नै सफळ बणाबा खातर ,शेखावाटी अंचल रै मायङ भाषा हेताळुवां रो सामेळो 26/04/15 रै दिन 11:00 बज्यां जांगिङ भवन रेलवे स्टेसण रै नेङै राखिज्यो छै।इण सामेळै रा आगीवाण राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश पाटवी कर वीणा कैसेट्स रा डाइरेक्टर के.सी.मालू सा है....आप सगळां नै सामुहिक हेलो छै कै,इण माण री लङाई में मायङ खातर बत्था सूं बत्था संगळ्यां नै लेय'र पूगो सा..
जय राजस्थानी
जय राजस्थान
जय हिन्द
सीकर में राखीज्यो छै
" डागलियै चढ किनो उडासो
मिल सगला रमझोल मचासो
खिचडलो घी भर-भर खासो
इमलोणि रो रस भी पासो
छायी मनडे ऊमंग अपार
आयो आखातीज रो त्यौहार"
प्राइवेट स्कूल के बच्चे चिड़िया घर में बंदर को सोते
देखकर oh!! Wow monkey is sleeping ::: dont
disturb.
..
...
.... Govt.school ke bacche
ऐ जग्दिश्या देख थारो बाप हुत्तो हे। भाटो मार
528 वर्ष पूर्व राव बीकाजी द्वारा हुई थी
बीकानेर की स्थापना
विक्रम संवत् 1545 के वैशाख मास के शुक्ल पक्ष
की द्वितीया तिथि को ।
विश्व प्रसिद्ध चूहों के मंदिर ( जो बीकानेर से
लगभग तीस किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित
है ) में जिस देवी की मूर्ति है , उनका नाम
करणी माता है ; वे उस समय सशरीर इस मरुधरा
जांगळ प्रदेश में विद्यमान थीं । उनके आशीर्वाद
से जोधपुर राजघराने के राजकुंअर बीका ने अपने
पिता और अन्य लोगों के ताने को चुनौती रूप
में स्वीकार करते हुए , अपने चाचा कांधलजी के
साथ कड़ी श्रम -साधना , संघर्ष और जीवटता के
बल पर इस बंजर निर्जन भू भाग को रसा - बसा
कर बीकानेर नाम दिया ।
अक्षय द्वितीया के दिन बीकानेरवासी गेहूं
और मूंग का खीचड़ा घी मिला कर इमली और
गुड़ से बने स्वादिष्ट पेय इमलाणी के साथ जीमते
हैं , और घरों की छतों पर पतंग उड़ा कर हर्ष -
उल्लास से उत्सव मनाते हैं । यह हंसी- ख़ुशी , हर्ष
-उल्लास और उत्सव का माहौल अगले दिन
अक्षय तृतीया तक और भी जोशोख़रोश के
साथ उत्तरोतर बढ़ता ही जाता है ।
यहां के दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं -
श्रीलक्ष्मीनाथ मंदिर , नागणेचेजी का मंदिर ,
भांडाशाह जैन मंदिर , जूनागढ़ किला , लालगढ़
पैलेस , म्यूज़ियम , लालेश्वर महादेव मंदिर -
शिवबाड़ी , करणीमाता मंदिर - देशनोक ,
कपिलमुनि मंदिर और सरोवर - कोलायत , गजनेर
पैलेस आदि… ।
यहां के भुजिया , मिश्री , पापड़ , मिठाई ,
नमकीन आदि जगप्रसिद्ध हैं ही ।
मारवाड़ी री एक
छोरी ने अंग्रेजी बोलणा
रो शौक़ छडीयो
ऑटो में बैठ ने जावे री थी
एक दम धूल आई तो बोली
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ओ माय गॉड... भुतोलियो
कुंभ मेला नजदीक आ रहा हैं ।
साधुओं की संख्या हर साल बढती जा रही है ।
अपने पतियों को परेशान मत कीजिए ।
उन्हें प्यार से सम्भालिए ।
जनहित मे जारी
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आज सुबह मैं जेसे ही घर से निकला..एक बिल्ली मेरा रास्ता काट गई..मैं वहीँ रुक गया..
तो बिल्ली हँसते हुए बोली.._
अबे निकल जा..तेरी तो शादी हो चुकी हे...अब इससे बुरा तेरा क्या होगा....?
यदि कबीर जिन्दा होते तो आजकल के दोहे यह होते :-
नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात!
बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात!!
पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज!
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!!
भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास!
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!!
मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश!
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!
बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान!
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!!
पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग!
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग!!
फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर!
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर!
पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
भंडारे करते फिरें,और घर में भूखा बाप! पंडित आनन्द जोधपुर