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१.सज फागण आयो हे सखी,
हळकी ठंड हमें!
मद पद हद रे मांय,भोगी कठै भमें!!
२.कस तंग करियेह,पुठी धर पलोण,कामण झूरके कंत ने
तरबंन्ध मोहर तोण!!
३.बाट जोवूं वाल्लाह,नैण मारग निहार!
मन दिपे दीपावळी,तन (ज्यों) तीज-त्यौहार.
४.पीव मिळ्यो पौ-बारेह, नैणों होत निरोंत!
मन मुग्ध मुस्काय कर,
तन मन एक ही भोंत!!
फाल्गुनी बयार की दस्तक सन्निकट है, कामिनी की काम-कनखियों से विरह-दामिनी की दमक. मिलनोत्कंठा में उष्ट्रारुढ होकर पीव-प्रस्थान करते है,प्रिया-प्रदेश को...इत्यादि-इत्यादि.
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