आजकल एक रिती रिवाज से शादियों मै खड़े होकर खाना खाने का सिस्टम होता है
जो कि सांइस से और हमारे समाज के नज़रिये से बहुत ग़लत है :-इस बात को घ्यान मै रखते हुये एक मारवाड़ी कविता लिखी है :--
"मै फंस ग्यो खड़ा खाणा मे
मने बात समज में नी आवे
गाजर टमाटर गोभी काचा खावे
हाथ मे प्लेट लेने लैण लगावे...
काऊन्टर सु काऊन्टर पर जावे
ज्यूँ मंगतो फिरे दाणा ने
मै फस ग्यो खड़ा खाणा मे ।
बाजोट पोतीया जिमण थाल
ईण सगलो रो पड ग्यो काल
ऊबा ऊबा ही खाई रिया माल
देश री गदेडी और पूरब री चाल
पेली जेड़ो मिठास कटे खाणा मे
मै फस ग्यो खड़ा खाणा मे ।
एक हाथ मे प्लेट लिरावो
साग मिठाई भैलाई खावौ
भीड मे लोगो रा धक्का खावो
घूमता फिरता भोजन पावो
ज्यूँ बलद फिरे घाणा मे
मै फस ग्यो खड़ा खाणा मे ।
सगला व्यंजन लावणा दोरा
ले भी आवो तो संभालना दोरा
भीड भाड में बचावणा भी दोरा
ढुल जावेला रुखालना दोरा
मै डाफाचुक हो गयो जोधाणा मे
मै फंस ग्यो खड़ा खाणा मे ।
आर्केस्टरा वाला नाचे गावे
बिन्द बिन्दणी हँसता जावे
घर वाला लिफावा लिरावे
सगलाँ रो ध्यान है गाणा मे
मै फस ग्यो खड़ा खाणा मे
बुढा बढेरा किकर खावे
सामे बिन्द बिन्दनी सगला रे सामे हाथ मिलावे
विकलांगो ने कुण जिमावे
टाबर टींगर भूखा ही जावे
कोई बेठा ने कोई ऊबा ही खावे
ईण लोगो ने कुण समझावे
देखा देखी होड लगावे
सब लागा है आणा जाणा मे
मै फस ग्यो खड़ा खाणा मे ।
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