सरकारी अस्पताल, के क्वार्टर में रहने वाले डाक्टर की लगभग रोज की व्यथा :(कोई समझे तो)
(आपबीती पर आधारित):
मरीज आकर कहता है- डाक्टर साब मेरे खून की जांच करा दो ।
डाक्टर : क्यों?
मरीज : कोई खिया क थारे खून की खराबी है जिस्यूं थारे हाथ पैर दूखे है ।
,,,,,डाक्टर बहस से बचने के लिये दो तीन जांचे लिख देता है।
,,,,,जांच के बाद :
मरीज : क्या खराबी आयी है?
डाक्टर : कुछ नहीं ।नोर्मल है।
मरीज : मेरे खांसी भी बार-बार हो जाती है।
डाक्टर : अभी है क्या?
मरीज : नहीं, अभी तो नहीं है।
डाक्टर : ठीकहै मैं दवा लिख देता हूं।
मरीज : नहीं साहब एक्स -रो तो करा के देखो ।
,,,,डाक्टर बहस से बचने के लिये X-ray लिख देता है।
After x-ray....
मरीज : क्या गड़बड़ है?
डाक्टर : कुछ नहीं है, मैं दवाई लिख देता हूं।
मरीज : दवाइयां तो कितनी ही ले ली । आप तो इंजेक्शन लिख दो।
,,,,(डाक्टर बेचारा चकरा जाता है,सोचता है कहां फंस गया यार,क्यों डाॅक्टर बना,,,,अपने आपको कोसता है।)
डाक्टर : भैया , इंजेक्शन सिर्फ इमरजेंसी में लगता है,मैं अभी दवा लिख देता हूं। (ऐसा कहकर डाक्टर दवा लिखने लग जाता है।)
(मरीजों की लाइन भी लगी हुई है।)
डाक्टर दवा लिख कर मरीज को दे देता है।
मरीज : (पर्ची को गौर से देखते हुये) :" इसमें भूखे पेट के कैपसूल लिख्या के? वो भी लिखो!
एक दर्द की ट्यूब मालिश की लिख दीज्यो।
और हां, आखां में डालने की दवाई भी।
कभी कभार खांसी भी हो जावे मने, तो पीने की दवाई लिख देओ,,,,, दो लिखज्यो, छोटी बहोत आवे शीशी॥ "
(डाक्टर अपना सारी पढाई भूलकर यह सब लिखने लग जाता है।)
(मरीज परची लेकर जाने के लिये मुड़ता है, डाक्टर लंबी सांस लेकर next मरीज की तरफ देखता है।)
अचानक पहले वाला मरीज मुड़ता है । डाक्टर घबराता है।(मरीज घूरकर देखकर हंसते हुये) : अजी, बीपी नापना तो आप भूल ही गिया॥
डाक्टर भावशून्य होकर बीपी नापने लगता है।
(अस्पताल ओपीडी बन्द होने के बाद डाक्टर थका मांदा घर आता है। थोड़ी देर बैठता है।)
लेटते ही दरवाजे पर जोर से खट खट होती है,,,दरवाजा खोलते ही एक व्यक्ति अंदर आ जाता है॥
व्यक्ति : (एक कागज पकड़ा कर) :इस पर साइन कर दो ।
डाक्टर देखकर कहता है: भैया यह आय प्रमाणपत्र है,इस पर मैं साइन नहीं कर सकता, मैं तो आपको जानता भी नहीं।
व्यक्ति अपना फोन पकड़ा कर कहता है : लो बात करो। (किसी नेता /पत्रकार से बात कराता है।)
दस मिनट की बहस के बाद व्यक्ति भनभनाते हुए चला जाता है।
किसी तरह रात को खाना खाकर 11 बजे डाक्टर सो जाता है।
साढ़े ग्यारह बजे पुलिस वाले एक शराबी को मेडिकल मुआयने के लिये ले आते हैं। नशे में वह डाक्टर को भी गालियाँ निकालता है। डाक्टर चुपचाप अपना काम करता है।
उससे फ्री होकर लगभग 12 बजे डाक्टर सो जाता है।
लगभग डेड बजे रात को डिलिवरी वाले जगाते हैं :पेट दुख रहा है साहब। (पेट दुखने से ही तो बच्चा होगा यार ...)
डाक्टर को 2 बजे फिर नींद आ जाती है।
लगभग 3 बजे रात को एक एक्सीडैन्ट केस आता है। डाक्टर उठकर उनका इलाज करता है, एक को रेफर करता है।परिजन चिल्लाते हैं :गाडी मंगवाओ।
डाक्टर चार बजे सुबह फ्री होकर सोने की कोशिश करता है।
सुबह 5:30 बजे नल आताहै। पानी भरने उठता है। 6 बजे फिर थोड़ा सोने की असफल कोशिश करता है।
सुबह नहाने जाते समय एक और इमरजेंसी केस आ जाता है। उससे फ्री होने में थोड़ा वक्त लग जाता है।
ओपीडी टाइम होने वाला है।
किसी तरह नहा धोकर, शेव कर, बिना चाय नाश्ता किये ही अस्पताल जाता है ..., लेकिन 5-10 मिनट लेट हो जाता है। अस्पताल में 8-10 मरीज पहले से ही बैठे हैं।
डाक्टर अपने कमरे में घुसते समय एक मरीज की फुसफुसाहट सुनता है : "अरे टाइम तो हो गया 10 मिनट पहले ही ....,लेकिन कामचोर हैं साले! "
डाक्टर कुर्सी पर बैठते हुये सिर पकड़कर सोचता है ..." यह दूनिया डाॅक्टरों के लायक नहीं, नीम हकीमों के ही लायक है। "
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