अकबर समंद अथाह , तिहँ डूबा हिन्दू -तुरक।मेवाड़ी तिण माँह ,पोयण फूल प्रतापसी।।
वीरसिरोमणि महाराणा प्रताप कि प्रसंसा में महाकवि दुरसाजी आढ़ा द्धारा रचित दोहावली
अकबर पत्थर अनेक,कै भूपत भेळा किया। हाथ न लागो हेक, पारस राण प्रतापसी।।
अकबरियै इक बार,दागळ की सारी दुनी।अणदागळ असवार, रहियौ राण प्रतापसी।।
अकबर गरब न आण, हिन्दू सह चाकर हुआ।दीठौ कोय दीवाण,करतो लटका कटहड़े।।
अस लेगौ अण दाग, पाग लेगौ अण नामी।गौ आड़ा गवड़ाय, जिको बहतौ धुर वामी।।
लोपै हिंदू लाज,सगपण रोपै तुरक सूं। आरज-कुळ री आज,पूँजी राण प्रतापसी।।
सुख-हित सियाळ समाज,हिंदू अकबर-वस् हुआ।रोसिलौ भृगराज,पजै न राण प्रतापसी।।
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