कुंडलिया छंद
मनमौजी इक सोडषी, मन मैं करत विचार।
नेह बिना नह निभत है, बिरथ सकल संसार।।
बिरथ सकल संसार, जगत पिव बिन सब सूनो,
नेह नवल संसार में, शेंषही सब जूनो।।
पिव बिन जगत असार, धरम पौथी सब खौजी।
जीवन अब बेकार, मरण तत्पर मनमौजी ।।
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